dayra

Wednesday 12 October 2011

पल .....Time of consciousness


महसूस करता हु में रात की ठंडी सांसों को,
.........जैसे अब ये कमजोर पड़ने लगी है !
सुनता  हूँ  मै सन्नाटों मै गूंजती आवाजे ;
अब ये बर्फ सी जमने लगी है !




देखता हु............ मै काले बदल को पिघलते हुएं ;
सारी धुन्धलाहत ओस की बूंदों में उतरने लगी है ;
हल्की सी जय ध्वनी आती है..... मेरे कानों तक ;
मेरे कदमो की गति अब बदने लगी है !





जैसे किसी चोटी से मंजिल का नजारा हो ;
...........जैसे स्वर्ग को धरती ने पुकारा हो ;
जैसे उल्लुओ के आगे अँधेरा छाने लगा ;
जैसे  भोर  की राह में पपीहा गाने लगा ;

हर लम्हे की आहत को हर पदचाप को सुन सकता हु मै ,
उसके मिलने की ख़ुशी में....... हर गम भूल सकता हु मै,

लगता है........ जैसे अब पंछी चाह्चाहयेगे ;
जैसे कोमल लतिकाए अंगड़ाई लेने लगी है !


पर अँधेरा अभी छठा भी नहीं है,रास्ता  अभी  कटा  भी  नहीं है !
पूरब  से  आती  हवाए , सूरज का सन्देश लायी है

ठंडी पवन है पर इसने तो मुझने गर्मी जगाई है !

लगता है जैसे सबेरा होने को है........!
सबेरा होने को है....!