आवारा आवारा सी हो गयी है तू ;
कभी हसती तो कभी रूठ जाती है !!
मै एक डगर तो दूजी चुन लेती है तू ;
जिंदगी कभी कभी इनी बेवफा क्यों है तू ?
बेखबर अनजानी सी हो गयी है तू ;
सवालों सी सच्ची जवाबों सी झूटी ,
वादों सी पक्की ख्वाबों सी कच्ची ;
जिंदगी सच्ची झूटी सी फिर भी प्यारी सी क्यों है तू ??
भूली बिसरी सी कभी मिसरी सी हो गयी है तू ;
भूलना चाहू जिन लम्हों को फिर याद दिलाती है !
और याद करना चहुँ तो रुलाती है तू ;
जिंदगी तू कभी कभी इतनी न्यारी क्यों है ?
प्यारी प्यारी सी हो गयी है तू ,
चाहत सी खिल जाती है चेहरे पर ;
कभी धुन बनकर लबों पर थिरकती नजर आती है तू !
मोहनी मूरत सी छा जाती है आँखों में ;
जिंदगी कभी कभी इतनी प्यारी क्यों है तू ?
कभी वादें करती है साथ निभाने के ,
हर मुस्किल में मेरी और हाथ बढाती है !
कभी माँ जैसे गौदी में उठा लेती है ;
तो बाबा की तरह कंधे पर चड़ा लेती है ;
दादी सी पल्लू की गाठे खोलती है !
कभी नानी सी प्यारी बातें बोलती है तू ;
जिंदगी कभी कभी तू इतनी अपनी क्यों है !
कभी दूर ले आती है अपनों से ;
मिला लती है सपनों से ;
रंगीन कभी बेरंग लगती है ;
कभी शुरुवात कभी आखरी शाम लगती है !
फुरसत में भारी कभी तू बेगानी लगती है !
जिंदगी व्यस्त व्यस्त सी हो गयी है तू ;
एक बात तो बता तू जैसी भी है !
इतनी प्यारी क्यों है ???