dayra

Wednesday, 17 July 2013

खामोशी...!!!

उसके टूटने से बिखरने तक ,
रूठने से मुकरने तक ,
देखा है मेने हर पल को !

पर सुना नहीं क्या कहा उसने ,
कई राते जाग कर काट ली !
कई बातें खुद से बाँट ली !

अंजान अब तक क्या बातें हुई ,
मेरे और मेरे बिच ......

पर जो दूर जा चुके है !
लड़खड़ाते कदमो  की पहुच से ,
नहीं चाहिए , अब कभी वो दोस्त !

लोगों को लगता है पत्थर के ,
दिल में अरमान नहीं होता !
अब मुझे गुस्सा नहीं आता यार !

उसकी खामोशी से सुबकने तक ,
उसकी बदहाली से भटकने तक ,
देखा है उसकी मनमानियों को ,
पर वो बैमानी नहीं थी !

औ गुजरी हुई रातों के ख़ामोश लम्हों ,
अब वापस मत आना !
जो अँधेरे में भी साथ था !
वो मन का प्रकाश अब भी है !
तेरी इर्ष्या के दाग अब भी है !
तकलीफों में मिला जिंदगी का राज अब भी है !!!

Wednesday, 5 June 2013

देखा इंसान ....!!!


मैं इक शख्स को जानता हूँ,
दूसरों के दुःखो को बाटने का रोग हैं
उसे आँसू पोछने का शौक है..! 

ज्यादा नही जानता कौन है वो 
मतलब ना धर्म ना जात
है उसमें कुछ बात 
बुद्धि से ब्राह्मण, बल से क्षत्रिय
हृदय से वैश्य और सेवा कर्मों से क्षुद्र लगता है..!
मुझे वो इंसान लगता हैं,


वैसे इन सीमेंट के जंगलो मे इंसान देखे  वर्षों बीत जाते है,
उसे डर नही लगता की कौन कब क्या कैसे कह दे कुछ, 
पर मुझे लगता है डर उससे !!
वैसे भी हम इंसान जो इंसान जैसे है पर इंसान नही है,
डरते है इंसानो से जो इंसान है..!!

मैं भी कम ही डरता हूँ क्योंकि ...
इंसानो की तादाद अब ज्यादा नही ,
हमारे असल जंगलो मे खबर है जोरों पर; 
इंसानो की बस्ती मे इंसान कम है..!
पर वो शख्स इंसान ही है,
जिसकी मैं बात कर रहा हूँ..!

ज्यादा तो नही जानता कौन है वो, 
मतलब ना नाम ना पता ...
दिलों मे बस जाता है..!
दुनिया को अपना देश बताता है,

उसे खुशी होती है सुनने मे..
की मैं खुश हूँ अगर कोई कहता
पर उसको खुश होते नही देखा,
पर मुझे खुशी है मैंने इंसान देखा !!
वैसे भी बड़ा मुश्किल है फर्क करना, 
जो इंसान जैसे है पर इंसान नही
और जो इंसान , इंसान है मे 

वो इक बार मुझसे मूखातिब हुआ 
उसने मुझसे ऐसा कुछ कहाँ 
बढ़ रहे है जंगल और कम भी हो रहे है 
कम हो रहें  जंगलों में जानवर रहते थे 
और बढ  रहे जंगलों में हम जानवर हो रहे है!!

हाँ उसने ये भी कहाँ
कल कल करती नदियाँ अब बदबू देती नाला है !!
धरती के रखवाले वनों का हाल बुरा कर डाला  है!!

कोई बात नहीं
जब क़ुदरत तेरे लिए फ़रमान  निकलेगी !!
अपने प्यारे बच्चों की पिड़ों का हिसाब पूरा कर डालेगी !!

मेने पूछा भाई  तुम इंसान हो क्या ??
वो बिना कुछ कहे चला गया .........

मुझे यकीं हो गया वो इंसान ही था !!है !!

Wednesday, 14 November 2012

अनचाहा मुकाम...!


भटकते हुए भटकने का रास्ता ढूंढ़ लिया
 अब तक भटकते थे बेरास्ते अब रास्तों पर भटकना सिख  लिया !!

हर रास्ता अनजान बेखबर मेरी चाल से , मै क्या चलता उसके साथ
 उसने मेरे कदमो से कदम मिलाना सिख लिया !!

पथरीली राहों में कुछ फूल भी है ;
 छालों की तपन में काटों का साथ निभाना सिख लिया !!

इस संगीत मयी दुनिया में यु तो बेसुरे है हम पर रास्तों का सन्नाटा रास नहीं आया
 और गुनगुनाना सिख लिया !!

मुक्केबाज़ी के खेल में जिंदगी बसती है मेरी, हर मुक्का मार  कर तो बहुत खुश हुआ
दांत तुड़वाकर मुस्कुराना सिख लिया !!

अब भी जीता हूँ सपनों के जहान में , कुछ हसिन कुछ खोफनाक है मगर
 हर ख्वाब से नजर मिलाना सिख लिया !!

उचाईयों को आँखों के निशाने पर रख कर ,
गहराई में डूब कर उभारना सिख लिया !!

गुजर गया कारवां , खो गए मुसाफिर समय की पगडण्डी पर ,
तन्हा ही सही खुद का साथ निभाना सिख लिया !!

सहारे अक्सर कमजोर बना देते है पथिक को ,
अपनी कमजोरियों का सहारा बन जाना सिख लिया !!

आजादी प्यारी होती है हर परिंदे को आकाश की उचाईयों का सुख पाने को,
कुछ पल गुलाम कहलाना सिख लिया !!

हार जीत का खेल है जिंदगी की जमी पर हर लम्हे की करवट ,
कभी जीत कर हारना तो कभी हर कर भी जीत जाना सिख लिया !!

मन की आग बुझाने के साधन है अनगिनत जलाने के शौक ने कलम से अंगारों को दहकाना सिख लिया !!

हर ठोकर को सिख समझना सिख लिया !!

Saturday, 30 June 2012

चल चले इन बेनाम बस्तियों से!!!



कल रात के सुनसान शौर में ... भावनाओं की हिलोरे में मै कुछ इस तरह बह गया !! 



इस बिखरे अँधेरे में मै हूँ और मै ही हूँ इस जगह ;
सरसराती सी ठंडी हवा और मुझे चिड़ाते से ये झींगुर ;
ये जामुन का पेड़ शांत खड़ा है और बेखबर है दाड़िम भी ;
अलसाये कुत्ते ने भोकना बंद कर दिया है जिसे मै अपना दोस्त कहता हूँ 
रात का तीसरा पहर है अभी पर ये कोए क्यों परेशान है;
सुनसान सड़क पर मेरे मन का शौर जाने कब होगी भोर ;
बस मेरे ही पदचाप है सन्नाटों को चीरते हुए टक, टक टक ;
आषाढ़ की रातों को ये बादल और भी काली बना देते है 
न चाँद न तारे न बिजली का प्रकाश ,
सचमुच नील नहीं श्याम है आकाश ;
मै क्यों चल रहा हूँ ? कैसे चल रहा हूँ ? प्रश्न है ये खाश !!
धुंधला रहा है मेरे मन का प्रकाश !!!!!!
अरे तिन कुत्ते और आये मुझे देखा और गुर्राए ;
पर मेरे दोस्त ने उन्हें कुछ एसा कहा की वो सकुचाये ;
शायद कहा हो दोस्त ने की ये भी दोस्त है हमारा ;
और वो भी  मेरे साथ चलने लगे !!
बहुत देर चलने के बाद भी सड़क का अंत न आया !
मेरा मन मुझे वापस खीच लाया ;
कहा "चल चले इन बेनाम बस्तियों से  " अभी इन्हें नाम देना बाकी है !!!!

Wednesday, 14 March 2012

सृजन : A Path !!!


सत्य तो यह है की मै माफ़ी चाहता हूँ ; क्युकी मुझे अब तक समझ नहीं आ रहा है की क्या ये कोई कविता है !!
पर अब कुछ लिख दिया है तो पोस्ट भी कर दिया ...उम्मीद है ..क्षमावान पाठक क्षमा तो करेगे ही साथ ही आशीष वचन भी कहेगे !! ताकि मुझ अज्ञानी को कुछ अपनी गलतियाँ जानने का मोका भी मिले !!

जब किसी रात मुझे नींद नहीं आती ;
जब कोई बात मुझे भूल नहीं पाती ;
भटकता पहुच जाता हूँ रास्तें अनजान में; 
टूटता कुछ नहीं आवाज आती है पुरे जहाँ में ;
किसी खून के कतरे में उबाल है इतना ;
की सारी दुनिया को जला दे !
किसी आंसू में प्रवाह है इतना ;
की  इस जग को डूबा दे  !


धड़कने बडती है सांसे उखाड़ने लगती है ;
उम्मीदें फिर गुनगुनाने लगती है ;
ले खडग तेयार मन हो जाता है बावला ;
धीर और गंभीर बुद्धि संभालता है मामला;

फिर 
शांत रस में डूब कर जब भाव अपने कहता हूँ में ;
उलझी हुई इस दुनिया में सहज ही बहता हूँ मै;


रात लम्बी कट गयी पर आँखें अब भी तेज है !
इनमे सवेरा देखने का भरा हुआ उत्तेज है !


मन मेरा कहता है देख जो तू चाहता ;
मिलते मोती उसी माझी को ;
सागर के ह्रदय में जो झाकता ;


बेडी गर हो सोने की भी तोड़ दे झकझोर दे !!!
तू विचारों से निराशा का विष अब निचोड़ दे !!!

Monday, 20 February 2012

जिंदगी कभी कभी !!!


आवारा आवारा सी हो गयी है तू ;
कभी हसती तो कभी रूठ जाती है !!
मै एक डगर तो दूजी चुन लेती है तू ;
जिंदगी कभी कभी इनी बेवफा क्यों है तू ?


बेखबर अनजानी सी हो गयी है तू ;
सवालों सी सच्ची जवाबों सी झूटी ,
वादों सी पक्की ख्वाबों सी कच्ची ;
जिंदगी सच्ची झूटी सी फिर भी प्यारी सी क्यों है तू ??

भूली    बिसरी  सी  कभी  मिसरी  सी  हो  गयी  है  तू ; 
भूलना  चाहू   जिन  लम्हों  को  फिर  याद  दिलाती  है !
और याद करना चहुँ तो रुलाती है तू ;
जिंदगी तू कभी कभी इतनी न्यारी क्यों  है ? 

प्यारी प्यारी सी हो गयी है तू ,
चाहत सी खिल जाती है चेहरे पर ;
कभी धुन बनकर लबों पर थिरकती नजर आती है तू !
मोहनी मूरत सी छा जाती है आँखों में ;
जिंदगी कभी कभी इतनी प्यारी क्यों है तू ?

कभी  वादें  करती  है  साथ  निभाने  के , 
हर मुस्किल में मेरी और हाथ बढाती है !
कभी माँ जैसे गौदी में उठा लेती है ;
तो बाबा की तरह कंधे पर चड़ा लेती है ;
दादी सी पल्लू की गाठे खोलती है !
कभी नानी सी प्यारी बातें बोलती है तू ;
जिंदगी कभी कभी तू इतनी अपनी क्यों है !

कभी दूर ले आती है अपनों से ;
मिला लती है सपनों से ;
रंगीन कभी बेरंग लगती है ;
कभी शुरुवात कभी आखरी शाम लगती है !
फुरसत में भारी कभी तू बेगानी लगती है !
जिंदगी व्यस्त व्यस्त सी हो गयी है तू ;
एक बात तो बता तू जैसी भी है !
इतनी प्यारी क्यों है ???

Friday, 27 January 2012

बर्फीली रात में दीपक राग !!

The messenger of peace


कुछ लोग आते है,
न सहते है न वो सताते है;


रोते को हंसाते है लड़ना सिखाते है;!
बस जागते है और सबको जागाते है !
नींद भगाते है ..!


एसा ही कोई आया था !
हर दिल में गहराया है !


अब तो हमारे खून में उतर गया है वो;
जो थी सड़ी हुई जड़े कुतर गया है वो;


अधिकारों से पहले कर्तव्यों की बात कर गया वो;
छोटे छोटे पर फुर्तीले कदमो से चलता था !
साथ साथ चलना सिखा गया वो ;
न धर्मं न धार्मिक श्री कृष्ण के वचन दोहरा गया वो ;

बड़ी विनम्रता से करता था विरोध ,
बड़े बड़े जनरलों को डरा गया वो ,


एक समय की बात है दक्षिण अफ्रीका की रात है !
उस रात रेल के डिब्बे में अन्याय से भिड़ गया वो ;
सत्य के साथ आग्रह एसा था की हर दिल में रह गया वो ;


सच की तलवार लेकर वीरों सा लड़ता था वो ;
निडर योद्धा अहिंसा की पूजा करता था वो ;
धीमी सी आवाज में सियासते उखाड़ गया वो ;
बिना कुल्हाड़ी उठाये बबूलों का जंगल उजाड़ गया वो ;


कहते है उसने ह्रदय के खून से सीचा है इस गुलशन को ;
अपनी मजबूत बाँहों में भिचा है इस गुलशन को ;


कहते है उसे लोग बापू , शांति और अहिंसा का पुजारी ;
हर उपाधि को परिभाषित कर गया वो ;


लोग आते है , दिलों में बस जाते है , जीना सिखा जाते है !!

Saturday, 14 January 2012

An Expressed Wish : खबर !


कुछ कदमों का साथ था उसका !!सबसे प्यारा अंदाज था उसका  !!



हे इश्वर! ये गुस्ताखी  ही सही पर क्या मै पूछ  लू !
कोई  मेरा  जो  अब तेरे  आशियाने  में  रहता  है !
मेरे  सपनों  के  सागर  में  बहता  है !
पुछु तो होगी नादानी न पुछु तो बेईमानी लगता है !
वो कैसा है  की खुश तो है ; तुझे  कुछ तो कहता है !



साये में जगत पिता के है,सोच कर मै चैन की नींद लेता हूँ !
वो चमकती आँखें देखना चाहूँ मै आँखें मूंद लेता हूँ !
आये जो पलकों पर उससे पहले ही आशुओं में सपने गुंद लेता हूँ!

हे  खुदा ! उसकी  नजरों  में  ही  रहना ;
वो  अपनों  को  न  पाकर  जरा  मायुश  रहता  है !
अगर  कर  दे  कोई  खता  तो  मुझे  देना  बता
सजा  के   लिए  तेयार  रहता  हूँ !

हे  इश्वर  ये  गुस्ताखी  ही  सही  पर  क्या  मै  पूछ  लू 
वो  है  जरा  नटखट  , कभी  नाहक  नाराज  होता  है !
वो  मुझसे  तो  न  छुपाता  था  कुछ  भी ;
क्या  तेरा   भी  हमराज  होता  है 
उसे  हर  बात  को  मनवाने  की  आदत  है ; रूठ  कर !
क्या  वहा  भी  रूठ  जाता  है !
एक सवाल है वो पूछता है जो   
तुझे उससे प्यार है कितना, बता देना वो कहे जितना 

हे  इश्वर  ये  गुस्ताखी  ही  सही  पर  क्या  मै  पूछ  लू 
वो कैसा  है  की  खुश  तो  है !
वो  तुझे  कुछ  तो  कहता  है !


सुना है तेरी गौद में किसी को किसी की याद नहीं आती है !!
पर उसे कहना तू चुपके से वो मेरे मन से नहीं जाती  है !!

उससे   कहना  मज़े  मे  है  हम ,बस  ज़रा यादें सताती है !!
उसकी दुरी का गम नहीं मुझे ,बस ज़रा आँखे भीग जाती है !!

Monday, 9 January 2012

The flow of जिंदगी..!!



हर बार पिघलती है !
हर रात ,हर सुबह पिघलती है !

हर पल , समय की सुई ;
रेत सी फिसलती है !


क्या खोया , क्या पाया ,
सोचे हम अगर ,
मन से विचारों की 
एक नदी निकलती है !

कुछ याद के कतरे है !
कुछ जख्म दुखते से 
कुछ खुशियों के है पल 
जो पल में गए निकल 
हर बार पिघलती है !


उलझे उलझे से 
कुछ सवाल पिघलते से 
और जवाब बिखरते से 

सिमटे है कुछ राज 
करना है आगाज 

कुछ खोया है मैंने 
कुछ पाया भी तो है !
हर बार पिघलती है !

हर पल , समय की सुई 
रेत सी फिसलती है ...!!!!!!

Sunday, 1 January 2012

I Am भारतवर्ष !!

मैंने  अपने आँचल में आग सुलगते देंखी है !
अपने बेटो की लाशों को फंदों पे लटकते देंखी है !
आंदोलनों की आंच में हड्डीया चिट्कते देंखी है !
मै  भारत  वर्ष  हूँ !!


देखा है मैंने अपने ही साये को बटते;
अपने बेटों को काटते अपने ही बेटों को कटते देखा है !
हर धर्मं को अपने आँचल ने पाला है मैंने ;
इन्ही धर्मान्धो को मेरी गोद उजाड़ते देखा है !
मै भारतवर्ष हूँ !! 

मंगल पाण्डेय की ललकार, लक्ष्मीबाई की तलवार को देखा है !
मैंने देखा है खुदीराम का मेरी आन पर मिट जाना;
अशफाक का इमान देखा है !
मै भारतवर्ष हूँ !!

देखा है मैंने युनियन जैक को उतरते  
लाल किले की ऊँचाइयों पर तिरंगे को फहरते देखा है !
मैंने राजघाट पर किसी अपने को बिखरते देखा है !
मै  भारतवर्ष  हूँ !!

मैंने तो एक सी जमी दी नदी दी ;
फिर भी जात धर्मो को लड़ते देखा है ....!

संविधान को बनते देखा है !
दबी सहमी आवाज से विरोध का स्वर उभरते देखा है !
याद है, मुझे वो नक्शलवाड़ी का मंजर;फिर से ..
विद्रोह को सुनसान गलियों से गुजरते देखा है !

कुछ नहीं छुपा है मुझसे सफ़ेद कुरते वालो ;
दुधिया सफेदी पर अनदेखे दागों को देखा है !
मै  भारतवर्ष  हूँ !!

गौदमो में भरे आनाज को नेताओ के राज को ;
मेने बच्चो की भूख और भूखो की लाश को देखा है !

काली रात को गुजरते सुबह को सवारते देखा है !
मैंने चन्द्रयान को आकाश की ऊंचाई को छुते ;
और ब्रमोश से आकाश को भय खाते देखा है !
तकनिकी में मेरे बच्चो के सामने ;
दुनिया को झुकते देखा है !
मै  भारतवर्ष  हूँ !!

देखा है मेरे बच्चो को मेरी रक्षा में लड़ते हुए ;
उनके ही कोफिनो पर खाई दलाली को देखा है ! 
देखा है चारा अनाज और चावल खाते हुए ;
बोफोर्स और तकनिकी को चबाते देखा है ....!

मै  भारतवर्ष  हूँ !  
मैंने अर्जुन का बाण ,अशोक का मान
और अकबर का ज्ञान देखा है !
श्री कृष्ण का प्रबंधन चाणक्य का गठबंधन ;
पोरश का संघर्षण देखा है ....!

मै  भारतवर्ष  हूँ !!
मै  भारतवर्ष  हूँ !!

Thursday, 22 December 2011

काश ! a Question ?



जब वो आँखें खोलती इस जग मे,
उपवन सा महकती वो ......
अपने नन्हे कदमो से  आँगन को,
पैजनियों की धुन में घोल कर 
संगीतमय बनती वो ,
किसी को बाबा , किसी को भैया ,
किसी को चाचा और दादा बुलाती  वो ,
काश दुनिया मे आती वो ,

हे विधाता !
क्या तू ही लिखता हे किस्मत ?
तो , फिर फैसला क्यों तुच्छ इंसान करे !
वाह, बेटा हो तो राज दुलारा..... बेटी के क्यों प्राण हरे !!!!!!

कभी कभी सोचता हूँ !
काश !??????????
आती वो भी सीता बन कर ,
कभी अनसुइया बन जाती वो 
दोनों कुल सजाती वो 
दुनिया को कुछ सिखलाती वो 

आती वो भी  जीजाबाई बनकर 
कभी पन्ना बन जाती वो ...
देशधर्म पर कैसे मिटना,
अपने बेटों को समझती वो !

महामाया बन जब आती वो..
या फिर यसोदा बन जाती तो
दुनिया को नया मशीहा 
दिलाती वो,


सपने बुनती तारों के आकाश में उड़ आती वो !
कभी तिरंगा लेकर चाँद पर चढ़ जाती वो !
वो भी बनती  सुनीता या कल्पना चावला बन जाती वो !

इंदिरा बनकर जब वो आती, 
सुनहरा भारत सजाती वो, 
या दुर्गा भाभी बन मिट्टी का टिका लगाती वो ! 
अपनी जमीनों पर मिट जाती वो !

काश ...दुनिया में आती वो !
कभी उड़नपरी बन देश का नाम चलती वो !
वो भी खाती सिने पर गोली ,
कमलेश कुमारी बन जाती वो !
आती  वो भी  लक्ष्मी बनकर ,
कभी पद्मिनी बन जाती वो ,
अपनी धरती पर प्राण लुटाती वो ,

जीवन को नया जीवन देती ,
घर द्वार सजाती वो ,

मीठे मीठे पकवानों से ,
मुह मीठा करवाती वो !

वो बेटी भी पिता को बच्चो सा समझाती;
गलती करती , रुठती , मनाती ,फिर गले लग जाती वो !
काश ! जग में आती वो !

अब फिर पूछता हूँ ! हे विधाता !
क्या तू बनाता है सबके भाग्य?

तो इतना महान फैसला ..... 
इस तुच्छ मानव के अधिकार में क्यों ?

Friday, 9 December 2011

काव्य जगत....

हर प्रयास पर उमड़ता विश्वास ,
हर बात पर जीत के जज्बात ;


ये खेल है कोमल शब्दों का 
कलमों से खेला जाता है 
मन के उन्मुक्त भावों को .....!!!

कल्पना के प्रवाहों को 
पन्नों पर उढेला जाता है ....!!!

शब्दों की नाजुक कलियों पर 
भवरों सा मंडरा मंडरा कर 
फूलों सा खिलाया जाता है ...!!!

मधुबन में बड़े जतन से 
एक एक फूल इकट्टा कर 
दुनिया को मधु पिलाया जाता है ...!!!

मिटती लहरों की निशानियों को 
रेत पर उभरी कहानियों को ;
शब्दों में में उतरा जाता है ...!!!

सागर के खारे पानी को 
देवों पर चढ़ाया जाता है .....!!!

अंगारों की क्या बात करे 
पत्थर के टुकड़ों को 
चमकते हीरों में सवारा जाता है .....!!!

ये काव्य जगत है प्यारे ,
यहाँ सूरज को भी पानी में डुबोया जाता है ....!!!

Saturday, 12 November 2011

आरजू ...wish !

तेरी जमीनों पे मेरी निगाहे रहे माँ ;
मेरी किस्मत पे तेरा  ही साया रहे माँ ;

तू न करना कभी फ़िक्र ओ ...मेरी माँ ;
तेरे क़दमों पे सर तुझपे कुरबा ये ......जान ;


तेरी मिटटी की खुशबु ,मेरे बदन में रहे माँ ;
तेरी बातों में मेरी ही यादें रहे माँ ;


तेरे लाल तो और भी है...मेरी माँ ;
बस तेरी ममता की लाली मेरे खून में रहे माँ ;


मुझको  बस एक आशीष दे............ मेरी माँ ;
तुझपे मिटने का जज्बा भी मुझमे रहे माँ ; 


तेरी बगिया की मिट्टी चाहे न  दे .मेरी  माँ ;
पर काटों सी किस्मत तो मेरी.. रहे माँ ;


तुझको जब मुझपे प्यार आये मेरी माँ ;


.............तेरी मिट्टी की चुनर ओढा देना माँ !!!!!!!!!!
..............तेरे आँचल में थोड़ी  जगह देना माँ !!!!!!!!!

Wednesday, 12 October 2011

पल .....Time of consciousness


महसूस करता हु में रात की ठंडी सांसों को,
.........जैसे अब ये कमजोर पड़ने लगी है !
सुनता  हूँ  मै सन्नाटों मै गूंजती आवाजे ;
अब ये बर्फ सी जमने लगी है !




देखता हु............ मै काले बदल को पिघलते हुएं ;
सारी धुन्धलाहत ओस की बूंदों में उतरने लगी है ;
हल्की सी जय ध्वनी आती है..... मेरे कानों तक ;
मेरे कदमो की गति अब बदने लगी है !





जैसे किसी चोटी से मंजिल का नजारा हो ;
...........जैसे स्वर्ग को धरती ने पुकारा हो ;
जैसे उल्लुओ के आगे अँधेरा छाने लगा ;
जैसे  भोर  की राह में पपीहा गाने लगा ;

हर लम्हे की आहत को हर पदचाप को सुन सकता हु मै ,
उसके मिलने की ख़ुशी में....... हर गम भूल सकता हु मै,

लगता है........ जैसे अब पंछी चाह्चाहयेगे ;
जैसे कोमल लतिकाए अंगड़ाई लेने लगी है !


पर अँधेरा अभी छठा भी नहीं है,रास्ता  अभी  कटा  भी  नहीं है !
पूरब  से  आती  हवाए , सूरज का सन्देश लायी है

ठंडी पवन है पर इसने तो मुझने गर्मी जगाई है !

लगता है जैसे सबेरा होने को है........!
सबेरा होने को है....!

Tuesday, 27 September 2011

आशा n Effusion.......

सुनसान  पगडंडियों  पर  वो  चलता  जा  रहा  था  !
बारिश  की  बूंदों  में  भी  वो  जलता  जा  रहा  था !


bahav vicharo ka
विचारो का झगड़ा अब बढता जा रहा था ,
मालूम  नहीं  वो  मंजिल  कितने  दूर  है!

आकाश  तो  है  इस  समंदर  के  ऊपर;
पता  नहीं  जमी  किस  छोर है  !

उम्मीदों  का  दिया  आशाओ से  जिया ;
धेर्य  का  तेल अब घटता जा रहा था !



होसलों  से  जंग जीतते है मालूम है उसे ;
पर  होसला  ही  होसला  खोये जा रहा था !

उड़ने की कला तो  आती  थी उसे ;
पर स्वप्न लोक में कोहरा छाए जा रहा था !

चलते  चलते  गिरता  फिर  उठता  वो ;
लड़खड़ाते  पैर  पर  वो  चलता  जा  रहा  था!

पूरब   की  और  से  क्या  देखता  है  वो ;
एक  बार  फिर  सूरज  उगा  आ  रहा  था !

आशा  जगी  उठा , कमर  कसी   फिर  ;
पोछा आँखों से नीर, भरे तरकश में तीर ;

निशाना  लक्ष्य  पर  वो  साधे  जा  रहा  था !
चलना  ही  जिंदगी  है  वो  गाए  जा  रहा  था !


हार को हराने की योजना बनाये जा रहा था !
कर्म की धरती पर मेहनत के बीज बिछाये जा रहा था !

आँधियों   में  भी  दिए  जलाये  जा  रहा  था !
जीत  जायेगे  हम  गुनगुनाये  जा  रहा  था !



ये  कोई  कविता नहीं , ये एक सच्चाई है ! जिसे मैंने जिया है , जैसे  उम्हड़ता सा ज्वार सागर के शांत तन पर उत्पात मचाता है ! वैसे ही कोई समय का क्षण मेरे मन को द्रवित कर गया था !.........पर फिर वो कभी नहीं आया !!!!! कभी नहीं ...