सत्य तो यह है की मै माफ़ी चाहता हूँ ; क्युकी मुझे अब तक समझ नहीं आ रहा है की क्या ये कोई कविता है !!
पर अब कुछ लिख दिया है तो पोस्ट भी कर दिया ...उम्मीद है ..क्षमावान पाठक क्षमा तो करेगे ही साथ ही आशीष वचन भी कहेगे !! ताकि मुझ अज्ञानी को कुछ अपनी गलतियाँ जानने का मोका भी मिले !!
जब किसी रात मुझे नींद नहीं आती ;
जब कोई बात मुझे भूल नहीं पाती ;
भटकता पहुच जाता हूँ रास्तें अनजान में;
टूटता कुछ नहीं आवाज आती है पुरे जहाँ में ;
किसी खून के कतरे में उबाल है इतना ;
की सारी दुनिया को जला दे !
किसी आंसू में प्रवाह है इतना ;
की इस जग को डूबा दे !
धड़कने बडती है सांसे उखाड़ने लगती है ;
उम्मीदें फिर गुनगुनाने लगती है ;
ले खडग तेयार मन हो जाता है बावला ;
धीर और गंभीर बुद्धि संभालता है मामला;
फिर
शांत रस में डूब कर जब भाव अपने कहता हूँ में ;
उलझी हुई इस दुनिया में सहज ही बहता हूँ मै;
रात लम्बी कट गयी पर आँखें अब भी तेज है !
इनमे सवेरा देखने का भरा हुआ उत्तेज है !
मन मेरा कहता है देख जो तू चाहता ;
मिलते मोती उसी माझी को ;
सागर के ह्रदय में जो झाकता ;
बेडी गर हो सोने की भी तोड़ दे झकझोर दे !!!
तू विचारों से निराशा का विष अब निचोड़ दे !!!
रात लम्बी कट गई पर आँखे अब भी तेज है
ReplyDeleteइनमे सवेरा देखने का भरा हुआ उत्तेज है .
अशोक भाई आशा से भरी हुई पंक्तिया बहुत सुन्दर....
thanks..!!!
Deleteबहुत सुंदर भावों हे पिरोई है आपने कविता ...लिखते रहें ...
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें ...!!
thanks..!!!
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..........
१००% कविता है सर ,खूबसूरत कविता ......
:-)
सादर
dhanyawad :)
Deleteरात लम्बी कट गई पर आँखे अब भी तेज है
ReplyDeleteइनमे सवेरा देखने का भरा हुआ उत्तेज है .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
aabhari hun sir !!!
Deleteवाह ...बहुत ही बढिया लिखा है आपने ।
ReplyDeleteaapka visleshan paa kar accha laga !! dhanyawad !!
Deleteप्रवाहमयी व सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteabhari hun ... !!
Deleteutsah badhati antim panktiyaan.....behatrin rachna
ReplyDeletedhanyawad :)
Deleteइस निराशा के विष को भी खुद ही निचोडना होता है ...
ReplyDeleteसार्थक रचना है ...
ashish vachanon ke liye hridaya se aabhari hu !!
Deleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeletebahut dhnayawad manish ji aap padhare !!
Deleteटूटता कुछ नहीं आवाज आती है पुरे जहाँ में ---कोन कहता है की ये कविता नहीं है अरे भाई ये ही कविता है -
ReplyDeleteutshahvardhan ke liye aabhari hun !!
Deleteमन से सहज उपजे भाव ही तो कविता है. बहुत सुंदर............
ReplyDeletesir stya kaha aapne ..ashish chahuga !!
Deleteकविता है और एक सुन्दर कविता है, आभार!
ReplyDeleteji abhari hun ... bahut bahut dhanyawad !!!
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteprayash ko prastuti kahane ke liye dhanyawad !!!
Deletebahut hi sundar srijan birala ji ..badhai sweekaren.
ReplyDeleteati sundar prastuti.
ReplyDelete.
ReplyDeleteक्या बात है ...
वाह वाह !
wah birlaji, is kavita me wo utsah hai, wo tez hai jo ek nirash admi me bhi bhav bhar de ki mujhe uthna hai. antim panktiya ati sundar hai.
ReplyDeleteaise hi likhte rahiye...
Badhaiya.
अंतर्द्वंद से निकली बेहद खूबसूरत कविता है आज शब्द नहीं मिल रहे हैं मुझे इसकी प्रशंसा के लिये ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई
ReplyDeletewah ......bahut sundar ....prabhavsshali rachana ....badhai
ReplyDeleteati sundar......
ReplyDeleteविचारो को निराशाओ से दूर ही रखना चाहिए.
ReplyDeleteतभी अच्छे विचार आते है..
बहुत सुन्दर रचना...
:-)
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
सुन्दर रचना.................
ReplyDeleteBahut acha likhte h ashok bhai
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