dayra

Wednesday, 17 July 2013

खामोशी...!!!

उसके टूटने से बिखरने तक ,
रूठने से मुकरने तक ,
देखा है मेने हर पल को !

पर सुना नहीं क्या कहा उसने ,
कई राते जाग कर काट ली !
कई बातें खुद से बाँट ली !

अंजान अब तक क्या बातें हुई ,
मेरे और मेरे बिच ......

पर जो दूर जा चुके है !
लड़खड़ाते कदमो  की पहुच से ,
नहीं चाहिए , अब कभी वो दोस्त !

लोगों को लगता है पत्थर के ,
दिल में अरमान नहीं होता !
अब मुझे गुस्सा नहीं आता यार !

उसकी खामोशी से सुबकने तक ,
उसकी बदहाली से भटकने तक ,
देखा है उसकी मनमानियों को ,
पर वो बैमानी नहीं थी !

औ गुजरी हुई रातों के ख़ामोश लम्हों ,
अब वापस मत आना !
जो अँधेरे में भी साथ था !
वो मन का प्रकाश अब भी है !
तेरी इर्ष्या के दाग अब भी है !
तकलीफों में मिला जिंदगी का राज अब भी है !!!