dayra

Monday 22 August 2011

जागती रांतें.......Struggle

जब सूरज भी जा छुप जाये,
चाँद भी ना नजर  आये, 
तारे  आंख  चुराए जब,
झींगुर गीत सुनाये  जब'

तब  साथ  तुम्हारे  रहने  को,  
परछाई भी करताये  तब;

घनघोर  अँधेरा  छा  जाये,
और  कुछ  भी नजर ना  आये ! 

घबराना  ना कतराना ना ,

इन्ही  अँधेरी  रातों  में  ,
उद्घोष  विजय  के  होते  है !
काली  रातों की  गोदी  में ,
उजालो  के अंकुर  सोतें  है !
झकझोर उन्हें  ललकार  उन्हें ,
जाग  जाग फटकार  उन्हें ,



उठ  जाग जाग अब  देर  न  कर ,
सपनो  के  जाग में  सेर   न कर ,
जो  दिन  को  सुखद  बनाने  को ,
रातों  की  बलि  चढाते है  !
बलिदानी  तो  इस  जग  में , 
देवो  से  पूजे  जाते  है !

देख  तिमिर  की बेला से ,
दीपक  कैसे  झगड़  रहा  ;


नन्हा  सा  योद्धा   जैसे  ,
देत्यो  के  दल  पर  भारी  पड़  रहा !

इतिहास  नया  अब  लिखने  को ,
भारत  माँ  पुकार  रही ;
इस नए  वीर  से लड़ने  को ,
 कठिनाई  भी  ललकार  रही ;

उठ  जाग  जाग अब  देर  न कर , 
सपनो  के जाग ना सेर  न  कर........

9 comments:

  1. this poem u should dedicate to our's type people who have a lot of strrugle

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  2. of course anil this poem is dedicated to aal my frnds like u...

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  3. jab bhi aapki kavita padti hu ... life me ek nayi si ujali kiran dekh hi jati h ... its really awsm as always

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  4. सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

    संजय कुमार
    आदत….मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  5. इन्ही अँधेरी रातों में ,
    उद्घोष विजय के होते है !
    काली रातों की गोदी में ,
    उजालो के अंकुर सोतें है !
    झकझोर उन्हें ललकार उन्हें ,
    जाग जाग फटकार उन्हें ,

    बहुत खूबसूरत रचना ..

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  6. इन्ही अँधेरी रातों में , उद्घोष विजय के होते है ! काली रातों की गोदी में , उजालो के अंकुर सोतें है !----आशा से ओतप्रोत -बहुत खूब

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  7. waah kya bat hai dear , bahut khubsurat rachna ...badhai

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