dayra

Wednesday 17 July 2013

खामोशी...!!!

उसके टूटने से बिखरने तक ,
रूठने से मुकरने तक ,
देखा है मेने हर पल को !

पर सुना नहीं क्या कहा उसने ,
कई राते जाग कर काट ली !
कई बातें खुद से बाँट ली !

अंजान अब तक क्या बातें हुई ,
मेरे और मेरे बिच ......

पर जो दूर जा चुके है !
लड़खड़ाते कदमो  की पहुच से ,
नहीं चाहिए , अब कभी वो दोस्त !

लोगों को लगता है पत्थर के ,
दिल में अरमान नहीं होता !
अब मुझे गुस्सा नहीं आता यार !

उसकी खामोशी से सुबकने तक ,
उसकी बदहाली से भटकने तक ,
देखा है उसकी मनमानियों को ,
पर वो बैमानी नहीं थी !

औ गुजरी हुई रातों के ख़ामोश लम्हों ,
अब वापस मत आना !
जो अँधेरे में भी साथ था !
वो मन का प्रकाश अब भी है !
तेरी इर्ष्या के दाग अब भी है !
तकलीफों में मिला जिंदगी का राज अब भी है !!!

21 comments:

  1. Awsmm.....
    Isko Pad K Koi b insaan emotional ho jayega..
    very nicely written ( dil ko chune wali poem)
    really

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  2. thank you vandevii very much

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  3. आपकी कविता बहुत दिनो बाद पढ़ने को मिला । आपकी कविता की मैं सदा ही प्रशंसक रही हुँ । ये भी बहुत ही सुन्दर लगा...विशेषत शेष पंक्ति मन को छु गयी ।

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    1. thank you didi aapne bhi bade din baad darshan diye

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  4. waah kya khub likha he...

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    1. nandkishore bhai aapke protshahan ka natija hai ye sab
      dhanyawad

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  5. औ गुजारी हुयी रातो के खामोश लम्हों अब वापस मत आना --बहुत खूब

    धन्यवाद बिरला जी बहुत दिनों के बाद कुछ पढने को मिला

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  6. बहुत सुंदर रचना ,

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  7. वाकई में तकलीफों में ही जिंदगी का राज छुपा होता है...
    बहुत बढ़िया..

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  8. सुंदर रचना.....

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  9. खामोशी आती है तो बहुत देर तक रहती है ...
    एहसास लिए गहरी रचना है ...

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  10. अंतर्मन के कपाटों पर दस्तक देती मार्मिक प्रस्तुति

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  11. वक्त के साथ पत्थर दिल को भी पिघलते देर नहीं लगती ...
    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना

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  12. बहुत खूब

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  13. खामोशी, बहुत ही सुंदर रचना।

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  14. खामोशी, बहुत ही सुंदर रचना।

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