मैं इक शख्स को जानता हूँ,
दूसरों के दुःखो को बाटने का रोग हैं
उसे आँसू पोछने का शौक है..!
ज्यादा नही जानता कौन है वो
मतलब ना धर्म ना जात
है उसमें कुछ बात
बुद्धि से ब्राह्मण, बल से क्षत्रिय
हृदय से वैश्य और सेवा कर्मों से क्षुद्र लगता है..!
मुझे वो इंसान लगता हैं,
वैसे इन सीमेंट के जंगलो मे इंसान देखे वर्षों बीत जाते है,
उसे डर नही लगता की कौन कब क्या कैसे कह दे कुछ,
पर मुझे लगता है डर उससे !!
वैसे भी हम इंसान जो इंसान जैसे है पर इंसान नही है,
डरते है इंसानो से जो इंसान है..!!
मैं भी कम ही डरता हूँ क्योंकि ...उसे डर नही लगता की कौन कब क्या कैसे कह दे कुछ,
पर मुझे लगता है डर उससे !!
वैसे भी हम इंसान जो इंसान जैसे है पर इंसान नही है,
डरते है इंसानो से जो इंसान है..!!
इंसानो की तादाद अब ज्यादा नही ,
हमारे असल जंगलो मे खबर है जोरों पर;
इंसानो की बस्ती मे इंसान कम है..!
पर वो शख्स इंसान ही है,
जिसकी मैं बात कर रहा हूँ..!
ज्यादा तो नही जानता कौन है वो,
मतलब ना नाम ना पता ...
दिलों मे बस जाता है..!
दुनिया को अपना देश बताता है,
उसे खुशी होती है सुनने मे..
की मैं खुश हूँ अगर कोई कहता
पर उसको खुश होते नही देखा,
पर मुझे खुशी है मैंने इंसान देखा !!
वैसे भी बड़ा मुश्किल है फर्क करना,
जो इंसान जैसे है पर इंसान नही
और जो इंसान , इंसान है मे
वो इक बार मुझसे मूखातिब हुआ
उसने मुझसे ऐसा कुछ कहाँ
बढ़ रहे है जंगल और कम भी हो रहे है
कम हो रहें जंगलों में जानवर रहते थे
और बढ रहे जंगलों में हम जानवर हो रहे है!!
हाँ उसने ये भी कहाँ
कल कल करती नदियाँ अब बदबू देती नाला है !!
धरती के रखवाले वनों का हाल बुरा कर डाला है!!
कोई बात नहीं
जब क़ुदरत तेरे लिए फ़रमान निकलेगी !!
अपने प्यारे बच्चों की पिड़ों का हिसाब पूरा कर डालेगी !!
मेने पूछा भाई तुम इंसान हो क्या ??
वो बिना कुछ कहे चला गया .........
मुझे यकीं हो गया वो इंसान ही था !!है !!