जब वो आँखें खोलती इस जग मे,
अपने नन्हे कदमो से आँगन को,
पैजनियों की धुन में घोल कर
किसी को बाबा , किसी को भैया ,
किसी को चाचा और दादा बुलाती वो ,
क्या तू ही लिखता हे किस्मत ?
तो , फिर फैसला क्यों तुच्छ इंसान करे !
वाह, बेटा हो तो राज दुलारा..... बेटी के क्यों प्राण हरे !!!!!!
कभी कभी सोचता हूँ !
सपने बुनती तारों के आकाश में उड़ आती वो !
कभी तिरंगा लेकर चाँद पर चढ़ जाती वो !
वो भी बनती सुनीता या कल्पना चावला बन जाती वो !
या दुर्गा भाभी बन मिट्टी का टिका लगाती वो !
अपनी जमीनों पर मिट जाती वो !
काश ...दुनिया में आती वो !
कभी उड़नपरी बन देश का नाम चलती वो !
वो भी खाती सिने पर गोली ,
कमलेश कुमारी बन जाती वो !
अपनी धरती पर प्राण लुटाती वो ,
जीवन को नया जीवन देती ,
घर द्वार सजाती वो ,
मीठे मीठे पकवानों से ,
वो बेटी भी पिता को बच्चो सा समझाती;
गलती करती , रुठती , मनाती ,फिर गले लग जाती वो !
अब फिर पूछता हूँ ! हे विधाता !
क्या तू बनाता है सबके भाग्य?
इस तुच्छ मानव के अधिकार में क्यों ?
हर प्रयास पर उमड़ता विश्वास ,
हर बात पर जीत के जज्बात ;
मन के उन्मुक्त भावों को .....!!!
पन्नों पर उढेला जाता है ....!!!
शब्दों की नाजुक कलियों पर फूलों सा खिलाया जाता है ...!!!
दुनिया को मधु पिलाया जाता है ...!!!
मिटती लहरों की निशानियों को रेत पर उभरी कहानियों को ;
शब्दों में में उतरा जाता है ...!!! देवों पर चढ़ाया जाता है .....!!! चमकते हीरों में सवारा जाता है .....!!! यहाँ सूरज को भी पानी में डुबोया जाता है ....!!!