जब सूरज भी जा छुप जाये,
चाँद भी ना नजर आये,
तारे आंख चुराए जब,
झींगुर गीत सुनाये जब'
तब साथ तुम्हारे रहने को,
परछाई भी करताये तब;
घनघोर अँधेरा छा जाये,
और कुछ भी नजर ना आये !
घबराना ना कतराना ना ,
उद्घोष विजय के होते है !
काली रातों की गोदी में ,
उजालो के अंकुर सोतें है !
झकझोर उन्हें ललकार उन्हें ,
जाग जाग फटकार उन्हें ,
उठ जाग जाग अब देर न कर ,
सपनो के जाग में सेर न कर ,
जो दिन को सुखद बनाने को ,
रातों की बलि चढाते है !
बलिदानी तो इस जग में ,
देवो से पूजे जाते है !
देख तिमिर की बेला से ,
दीपक कैसे झगड़ रहा ;
देत्यो के दल पर भारी पड़ रहा !
इतिहास नया अब लिखने को ,
भारत माँ पुकार रही ;
इस नए वीर से लड़ने को ,
कठिनाई भी ललकार रही ;
उठ जाग जाग अब देर न कर ,
सपनो के जाग ना सेर न कर........
realy suprb
ReplyDeletethis poem u should dedicate to our's type people who have a lot of strrugle
ReplyDeleteof course anil this poem is dedicated to aal my frnds like u...
ReplyDeletejab bhi aapki kavita padti hu ... life me ek nayi si ujali kiran dekh hi jati h ... its really awsm as always
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए आपको बधाई
ReplyDeleteसंजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
इन्ही अँधेरी रातों में ,
ReplyDeleteउद्घोष विजय के होते है !
काली रातों की गोदी में ,
उजालो के अंकुर सोतें है !
झकझोर उन्हें ललकार उन्हें ,
जाग जाग फटकार उन्हें ,
बहुत खूबसूरत रचना ..
great great thought
ReplyDeleteइन्ही अँधेरी रातों में , उद्घोष विजय के होते है ! काली रातों की गोदी में , उजालो के अंकुर सोतें है !----आशा से ओतप्रोत -बहुत खूब
ReplyDeletewaah kya bat hai dear , bahut khubsurat rachna ...badhai
ReplyDelete