आवारा आवारा सी हो गयी है तू ;
कभी हसती तो कभी रूठ जाती है !!
मै एक डगर तो दूजी चुन लेती है तू ;
जिंदगी कभी कभी इनी बेवफा क्यों है तू ?
बेखबर अनजानी सी हो गयी है तू ;
सवालों सी सच्ची जवाबों सी झूटी ,
वादों सी पक्की ख्वाबों सी कच्ची ;
जिंदगी सच्ची झूटी सी फिर भी प्यारी सी क्यों है तू ??
भूली बिसरी सी कभी मिसरी सी हो गयी है तू ;
भूलना चाहू जिन लम्हों को फिर याद दिलाती है !
और याद करना चहुँ तो रुलाती है तू ;
जिंदगी तू कभी कभी इतनी न्यारी क्यों है ?
प्यारी प्यारी सी हो गयी है तू ,
चाहत सी खिल जाती है चेहरे पर ;
कभी धुन बनकर लबों पर थिरकती नजर आती है तू !
मोहनी मूरत सी छा जाती है आँखों में ;
जिंदगी कभी कभी इतनी प्यारी क्यों है तू ?
कभी वादें करती है साथ निभाने के ,
हर मुस्किल में मेरी और हाथ बढाती है !
कभी माँ जैसे गौदी में उठा लेती है ;
तो बाबा की तरह कंधे पर चड़ा लेती है ;
दादी सी पल्लू की गाठे खोलती है !
कभी नानी सी प्यारी बातें बोलती है तू ;
जिंदगी कभी कभी तू इतनी अपनी क्यों है !
कभी दूर ले आती है अपनों से ;
मिला लती है सपनों से ;
रंगीन कभी बेरंग लगती है ;
कभी शुरुवात कभी आखरी शाम लगती है !
फुरसत में भारी कभी तू बेगानी लगती है !
जिंदगी व्यस्त व्यस्त सी हो गयी है तू ;
एक बात तो बता तू जैसी भी है !
इतनी प्यारी क्यों है ???
बहुत अच्छी प्रस्तुति, बेहतरीन सुंदर रचना.....
ReplyDeleteशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
MY NEW POST ...सम्बोधन...
जिंदगी सचमुच प्यारी है...कितना कुछ तो दिया है इसने..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ज़िंदगी से प्यार करो तो ये ऐसी ही लगती है ...सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteisi ko jindgi khte hai.... bahut achcha...
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकभी शुरुआत कभी आखरी शाम लगती ---अति सुन्दर अशोक जी
ReplyDeletewaah bahut sunder dear, sach me bahut umda likhahai aapne .badhai
ReplyDeleteआपने तो हर आम इन्सान की ज़िन्दगी के हर पल को इस कविता में समेट
ReplyDeleteलिया है सच में बहुत ही सुन्दर लफ्जो में हर पहलू को दर्शाया है
" अति सुन्दर "
behatareen rachana ke liye badhai birala ji sath hi holi pr shubh kamanayen
ReplyDeleteसुंदर रचना As always love reading your poetry
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्यारी रचना..
ReplyDeleteभावनाओं की कोमलतम अभिव्यक्ति...
:-)
हर इंसान पे खरी उतरती ...जिंदगी तू इतनी भारी क्यों है
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