dayra

Saturday 30 June 2012

चल चले इन बेनाम बस्तियों से!!!



कल रात के सुनसान शौर में ... भावनाओं की हिलोरे में मै कुछ इस तरह बह गया !! 



इस बिखरे अँधेरे में मै हूँ और मै ही हूँ इस जगह ;
सरसराती सी ठंडी हवा और मुझे चिड़ाते से ये झींगुर ;
ये जामुन का पेड़ शांत खड़ा है और बेखबर है दाड़िम भी ;
अलसाये कुत्ते ने भोकना बंद कर दिया है जिसे मै अपना दोस्त कहता हूँ 
रात का तीसरा पहर है अभी पर ये कोए क्यों परेशान है;
सुनसान सड़क पर मेरे मन का शौर जाने कब होगी भोर ;
बस मेरे ही पदचाप है सन्नाटों को चीरते हुए टक, टक टक ;
आषाढ़ की रातों को ये बादल और भी काली बना देते है 
न चाँद न तारे न बिजली का प्रकाश ,
सचमुच नील नहीं श्याम है आकाश ;
मै क्यों चल रहा हूँ ? कैसे चल रहा हूँ ? प्रश्न है ये खाश !!
धुंधला रहा है मेरे मन का प्रकाश !!!!!!
अरे तिन कुत्ते और आये मुझे देखा और गुर्राए ;
पर मेरे दोस्त ने उन्हें कुछ एसा कहा की वो सकुचाये ;
शायद कहा हो दोस्त ने की ये भी दोस्त है हमारा ;
और वो भी  मेरे साथ चलने लगे !!
बहुत देर चलने के बाद भी सड़क का अंत न आया !
मेरा मन मुझे वापस खीच लाया ;
कहा "चल चले इन बेनाम बस्तियों से  " अभी इन्हें नाम देना बाकी है !!!!

13 comments:

  1. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

    ReplyDelete
  2. बहुत खूबशूरत अभिव्यक्ति ,,,सुंदर संम्प्रेषण,,,,

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दरटता लिए हुए एक मार्मिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदरता लिए हुए एक मार्मिक अभीव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. nice one.....but inhe naam de do bhai

    ReplyDelete
  6. वाह....
    बहुत सुन्दर रचना अशोक जी..
    बहुत सुन्दर!!!

    अनु

    ReplyDelete
  7. खामोश सुनसान रास्तों में भावनाओं का आवेग ...जब आँख खुलती है वापस लौटना होता है ...

    ReplyDelete
  8. खूबशूरत अभिव्यक्ति ,,,

    पोस्ट पर आने के लिए आभार,,,,,,,

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर सृजन , आभार.

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊंगा

    ReplyDelete
  10. बहुत उम्दा ... बहुत ही बढ़िया

    stupendo fantabulous fantastic

    ReplyDelete
  11. गहन भाव लिए रचना...
    अति सुन्दर...

    ReplyDelete
  12. गुमनाम सी सड़क .............

    ReplyDelete